Wednesday, November 14, 2018

सफलता

 सफलताओं के कदम चूमने की उलझन
मंजिलों को हाथ में पाने की उलफ़त

निश्चय ही हृदय की गर्तों से साधना है
मंजिलों को आसमान से ऊँचा नापना है

हवाओं का रुख मोड़ समान लाना है
इशारों में जहां को अपने भी नचाना है

तो मत रोको इन कदमों को बढ़ने से
हवाओं में उड़ने से सपनो में बढ़ने से

जब तक चछुओं से दिवा स्वप्न न देखो
जब तक अधरों को जल से रुखा न देखो

कदमों के छालों को गिनना न छोड़ों
तब तक चलते रहों बुलन्दियों को जोड़ो

मिलेगी मंजिल जब तड़प अधिक होगी
नयनों में प्यास भी भड़की अधिक होगी

लहराने को परचम केवल बातें न की होगी
कर्म की पगडंडियों पर पगों की गिनती न होगी

अधजली दुपहरिया में रवि की तपन न होगी
ठिठुरती अधेरियां में चाँद की शीलन न होगी

मिल जायेगी धरा पर मंजिल उस दिवस को
जब तुम्हारे अल्फाज नाप लेंगे गहराई रस को

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By neha shukla

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