सफलताओं के कदम चूमने की उलझन
मंजिलों को हाथ में पाने की उलफ़त
निश्चय ही हृदय की गर्तों से साधना है
मंजिलों को आसमान से ऊँचा नापना है
हवाओं का रुख मोड़ समान लाना है
इशारों में जहां को अपने भी नचाना है
तो मत रोको इन कदमों को बढ़ने से
हवाओं में उड़ने से सपनो में बढ़ने से
जब तक चछुओं से दिवा स्वप्न न देखो
जब तक अधरों को जल से रुखा न देखो
कदमों के छालों को गिनना न छोड़ों
तब तक चलते रहों बुलन्दियों को जोड़ो
मिलेगी मंजिल जब तड़प अधिक होगी
नयनों में प्यास भी भड़की अधिक होगी
लहराने को परचम केवल बातें न की होगी
कर्म की पगडंडियों पर पगों की गिनती न होगी
अधजली दुपहरिया में रवि की तपन न होगी
ठिठुरती अधेरियां में चाँद की शीलन न होगी
मिल जायेगी धरा पर मंजिल उस दिवस को
जब तुम्हारे अल्फाज नाप लेंगे गहराई रस को
&&&&&&&&
By neha shukla
मंजिलों को हाथ में पाने की उलफ़त
निश्चय ही हृदय की गर्तों से साधना है
मंजिलों को आसमान से ऊँचा नापना है
हवाओं का रुख मोड़ समान लाना है
इशारों में जहां को अपने भी नचाना है
तो मत रोको इन कदमों को बढ़ने से
हवाओं में उड़ने से सपनो में बढ़ने से
जब तक चछुओं से दिवा स्वप्न न देखो
जब तक अधरों को जल से रुखा न देखो
कदमों के छालों को गिनना न छोड़ों
तब तक चलते रहों बुलन्दियों को जोड़ो
मिलेगी मंजिल जब तड़प अधिक होगी
नयनों में प्यास भी भड़की अधिक होगी
लहराने को परचम केवल बातें न की होगी
कर्म की पगडंडियों पर पगों की गिनती न होगी
अधजली दुपहरिया में रवि की तपन न होगी
ठिठुरती अधेरियां में चाँद की शीलन न होगी
मिल जायेगी धरा पर मंजिल उस दिवस को
जब तुम्हारे अल्फाज नाप लेंगे गहराई रस को
&&&&&&&&
By neha shukla
No comments:
Post a Comment